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Moral Story In Hindi/ उम्मीद

 Moral Story In Hindi 

... उम्मीद ...


jazbaatiword.com ब्लॉग पर आप सभी का स्वागत है । आज के इस हिंदी कहानी ' उम्मीद 'आर्टिकल में आपको सिख मिलेगी और पता चलेगा कि क्यूं हमें दूसरों से उम्मींद या दूसरों पर डिपेंड नहीं रहना चाहिए। अपनी प्रॉब्लम्स, अपनी लड़ाई ख़ुद को ही लड़नी होती है ।

आगे कि बात आपको कहानी में समझ आएगी चलो शुरू करते है....


कहानी की शुरुआत

अमीर आदमी कहता है तुम अभी रुको मैं मेरे घर से तुम्हारे लिए कुछ लेके आता हूं उसने भी उस से उम्मीद लगा ली...... और एक चिट्ठी पड़ी थी।


Moral Story In Hindi/ उम्मीद


मैं सुबह सुबह उठा और रोज़ की तरह मेरी आदत थी चाय और बुक पढ़ने की । उस सुबह भी उठा और चाय व बुक ली और पार्क में चल गया । वहां एक कुर्सी पर बैठा और बुक पढ़ने लगा। उसमें मैने क़िस्सा पढ़ा जो मेरे दिल को छू गया और अहसास हुआ कि हम जो कुछ भी करना है अपनी जिंदगी में ख़ुद ही करना है दूसरों से उम्मींद नहीं रखनी चाहिए। दूसरों पर आश्रित नहीं होना चाहिए।


वो क़िस्सा यूं था कि......


कड़ाके की ठंड पड़ रही थी, एक चौराहे के पास एक भिखारी बैठा हुआ था । ना उसके पास कोई कंबल, ना ओढ़ने के लिए कोई गर्म कपड़ा था । फिर भी वह कड़ाके की ठंड में वहां बैठा हुआ था भीख मांगने के ताकि उसका पेट भर सके। शायद उसने अपने आप को इतना मज़बूत कर लिया होगा तभी उसको ठंड नही लग रही थी । कुछ दिन बीते, हफ़्ते बीते तो उस चौराहे से एक अमीर आदमी गुज़र रहा था, शायद ऑफिस से घर की और जा रहा था । उस अमीर आदमी ने उस भिखारी को देखा और थोड़ा भावुक हो गया ।

वो उस भिखारी के पास गया और बोला ...

आपको ठंड नहीं लग रही कितनी कड़ाके की ठंड हो रही हैं..?

भिखारी ने कहा...

साहब इतने पैसे नहीं है कि कुछ ख़रीद सकू, वैसे भी मुझे यहां बहुत समय हो गया रहते हुए।खुद को मौसम के अनुकूल बना लिया तो ठंड नहीं लगती।

फिर अमीर आदमी बोला...

कैसी बातें करते हो तुम भी इंसान हो मैं भी इंसान हूं जब मुझे ठंड लग रही है तो आपको भी लग रही होगी।

तुम थोड़ा सा इंजतार करो , मैं तुम्हारे लिए कुछ ओढ़ने की वस्तु या कंबल लेके आ रहा हूं अमीर आदमी ने कहा।

इतना बोलकर वो घर की तरफ़ चला गया, भिखारी उस से उम्मीद लगाए बैठा रहा।

अमीर आदमी जैसे ही घर पहुंचा तो उसके दिमाग़ से वो भिखारी वाली बात निकल गई और घर के काम में व्यस्त हो गया ।

काफ़ी समय के बाद उसको अचानक याद अरे उस भिखारी को ओढ़ने के लिए कंबल देना था ,तो उसने जल्दी सी से कंबल लिया और चौराहे पर गया जहां वो भिखारी से मिला था।

                  लेकिन जैसे ही......


अमीर आदमी चौराहे पर पहुंचा तो उसने देखा कि भिखारी तो ठंड के कारण मर चुका था । लेकिन उसके पास में एक चिट्ठी पड़ी थी जिसमें लिखा था ...

साहब मुझे यहां रहते हुए बहुत समय हो गया । ठंड, धूप, बारिश , आंधी में मेरा कुछ नहीं हुआ । और इस कड़ाके की ठंड में भी रहना सीख लिया था , ख़ुद पर हौसला और एक शक्ति थी इन सब से लड़ने के लिए।

लेकिन आप मुझे उम्मीद देके चले गए ,और मैं आपके ऊपर आश्रित हो गया और मैने मेरी सारी शक्ति खो दी। देखो आप तो नहीं आए लेकिन मौत जरूर आ गई। 

चिट्ठी पढ़ते ही अमीर आदमी को अहसास हुआ कि किसी को झूठी उम्मीद नहीं देनी चाहिए न ही किसी और पर आश्रित होना चाहिए।


Moral:- जो करना है खुद को ही करना है ,ना किसी और से उम्मीद रखो,ना किसी पर आश्रित रहो।





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